यहां मिलते थे महाराणा प्रताप और राणा पूंजा भील जानिए पूरी जानकारी, देखे video…

यहां मिलते थे महाराणा प्रताप और राणा पूंजा भील जानिए पूरी जानकारी, देखे video…

जनजाति समाज में मातृभू पर प्राण न्योछावर करने वाले कई नायकों ने जन्म लिया है, कई ऐसे नायक भी रहे जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा में अपना सम्पूर्ण जीवन ही समर्पित कर दिया। ऐसे ही एक वीर थे राणा पंजा भील। पुंजा भील महाराणा प्रताप के सेनानी थे। वे भील समुदाय से आते थे जो मध्यकालीन भारत मे महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में बड़ी संख्या में निवासरत था। पुंजा भील का राजस्थान में बहुत सम्मान हैं एवं राजस्थान में उनका नाम आज भी बड़े ही आदर से लिया जाता है।

उदयपुर में राणा,महाराणा प्रताप के राज्य में भील सरदारों का आदर का स्थान था। इन भील सरदारों के अद्वितीय पराक्रम और निष्ठा के कारण ही राणा प्रताप मुग़ल आक्रांताओं से अपनी मातृभूमि का बड़ा भूभाग स्वतंत्र कराने में सफल भी रहे, उस काल मे भील समुदाय के नायक पुंजा भिल को महाराणा प्रताप ने उनकी निष्ठा और पराक्रम के लिए राणा की उपाधि से सम्मानित किया।

कालांतर में अपने पूर्वजों की तरह वे भी महाराणा प्रताप के साथ आक्रांताओ के विरुद्ध संघर्ष का भाग बने, उन्होंने भोमत पैरिश का पनरवा गांव जो पहाड़ियों से घिरा हुआ था वहां अपनी सेना के साथ कमान संभाली. राणा पुंजा के पास 400 आदिवासी भीलों की सेना थी, उनके सैनिक जासूसी से लेकर वास्तविक युद्धक्षेत्र युद्ध , गुरिल्ला युद्ध प्रत्येक विधा में माहिर थे। हल्दी घाट की लड़ाई में राणा पुंजा की सेना अलग-अलग स्थानों पर टुकड़ियों में छुपी हुई थी।

हल्दी घाटी के युद्ध मे मेवाड़ की सेना पराक्रम से लड़ी, उनकी वीरता और शौर्य अद्भुत था हालांकि संख्या में चार गुना अधिक होने के कारण मुग़ल सेना भारी नुकसान के उपरांत आंशिक रूप से युद्ध जितने में सफल रही यही कारण रहा की अकबर निराश था, उसकी सेना मौत के मुंह में चली गई थी, उसने इसे अपनी विजय नहीं माना, वहीं युद्ध के उपरांत,पुंजा के नेतृत्व में भीलों को महाराणा प्रताप के परिवार की रक्षा की जिम्मेदारी भी दी गई थी जिसे पुंजा ने सहर्षता से स्वीकार कर लिया।

महाराणा प्रताप ने भीलों के प्रभाव में एक संरक्षित क्षेत्र चावंड में अपना राज्य स्थापित किया और मेवाड़ को पूर्ण स्वतन्त्र राज्य बनाने का प्रयास किया, इन सब में वीर पुंजा भिल का बड़ा योगदान था।महाराणा प्रताप की मां पुंजा को अपना पुत्र मानती थीं, उनकी सलाह थी कि महाराणा प्रताप को भाई कहना, पुंजा की स्वामिभक्ति और मातृभूमि प्रेम को मेवाड़ वंश ने भी उचित सम्मान दिया। राणा प्रताप के लिए पुंजा का समर्पण भाव ऐसा था की मेवाड़ के महाराणा के रूप में राज्याभिषेक के समय, भील सरदार पुंजा ने अपने अंगूठे के खून से महाराणा प्रताप का तिलक किया था।

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नोट – प्रत्येक फोटो प्रतीकात्मक है (फोटो स्रोत: गूगल)

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