क्या होता अगर डायनासोर आज भी ज़िंदा होते तो?

बताया जाता है कि क़रीब 6 करोड़ 60 लाख साल पहले एक एस्टेरॉयड हमारी धरती से टकराया था. इस टक्कर से जितनी ऊर्जा निकली थी, वो हिरोशिमा पर गिराए गए एटम बम से 10 अरब गुना ज़्यादा थी. एस्टेरॉयड के टकराने से सैकड़ों मील दूर तक आग का गोला फैल गया था. इस टक्कर से समंदर में सुनामी की प्रलयकारी लहरें उठी थीं, जिन्होंने आधी दुनिया में तबाही मचा दी थी.
ये क़यामत के आने जैसा था. हमारे वायुमंडल तक में आग लग गई थी. 25 किलो से ज़्यादा वज़न का कोई जानवर इस प्रलय में ज़िंदा नहीं बचा. क़यामत इसे ही तो कहते हैं कि एस्टेरॉयड की टक्कर से धरती पर जीवों की 75 फ़ीसद नस्लें हमेशा के लिए ख़त्म हो गईं.
आज वैज्ञानिक ये सोचते हैं कि अगर वो एस्टेरॉयड धरती से न टकराया होता, तो क्या होता? या फिर अगर वो क्षुद्र ग्रह कुछ मिनट पहले धरती से टकराया होता. तो ये आज के मेक्सिको के युकाटन प्रायद्वीप के बजाय गहरे समंदर में गिरा होता. इससे उतनी तबाही नहीं मचती, जितनी असल में मचती.
हाल ही में बीबीसी की एक डॉक्यूमेंट्री के लिए कई वैज्ञानिकों ने ऐसी संभावनाएं तलाशी थीं. इनमें अमरीका की टेक्सस यूनिवर्सिटी के शॉन गुलिक भी थी. वो भूवैज्ञानिक हैं. शॉन का मानना है कि अगर वो एस्टेरॉयड कुछ लम्हा पहले या बाद में धरती से टकराता तो या तो वो अटलांटिक महासागर में गिरता, या फिर प्रशांत महासागर में. इससे जो आग निकली, जो सल्फ़र का धुआं निकला, उसका असर धरती पर कम पड़ता.
ऐसा होता तो डायनासोर की नस्ल हमेशा के लिए नहीं ख़त्म होती. कुछ डायनासोर आज भी ज़िंदा होते. हालांकि उसके बाद भी धरती ने क़यामत के कई मंज़र देखे. शायद उनमें से भी कुछ बड़े डायनासोर बच जाते.
शायद वो आज के दरियाई घोड़े या गैंडों जैसे होते. ढेर सारे दांतों वाले हाड्रोसॉर्स के जीवाश्म हमें मिले ही हैं, जिनके एक हज़ार दांत हुआ करते थे. जबकि आज के घोड़ों के चालीस दांत ही होते हैं. अब जिसके पास इतने दांत हों, उसके लिए चारा यानी घास चबाना आसान होता.
डायनासोर की आंखें भी तेज़ हुआ करती थीं. इसलिए वो अपने क़रीब आते ख़तरे को भी दूर से ही पहचान लेते. इसीलिए आज के घोड़ों या गायों के मुक़ाबले उनके बचने की उम्मीद ज़्यादा थी.
कुछ उड़ने वाले डायनासोर, आज के चमगादड़ों की तरह ही ख़ुद को बदलते माहौल के हिसाब से ढाल लेते. या शायद सांप-छिपकलियों की तरह वो बिल बनाना सीख जाते.
वैज्ञानिक ये भी मानते हैं कि डायनासोर की कुछ नस्लें शायद अपने आप को समंदर में रहने लायक़ बना लेतीं. क्योंकि डायनासोर के सारे ही जीवाश्म ज़मीन पर रहने वाले मिले हैं. बहुत से विशाल डायनासोर आज की व्हेलों की तरह, समंदर को अपना आशियाना बना सकते थे. और अंडे देने के लिए ज़मीन पर आते. इक्थियोसॉर्स और प्लेसियोसॉर्स जैसे कुछ डायनासोर ऐसा ही करते थे.
अगर ज़मीन पर, हवा में या समंदर में रहने वाले डायनासोर आज भी बचे रहते, तो आज के परिंदों या स्तनधारी जीवों का फिर क्या होता?
वैज्ञानिक टॉम होल्त्ज़ मानते हैं कि परिंदे तो पहले ही ख़ुद को डायनासोर के साथ रहने के लिए ढाल चुके थे.
अब अगर डायनासोर की नस्लें आज तक ज़िंदा होतीं, तो उनके शरीर के साथ-साथ उनका दिमाग़ भी विकसित होता.
तो क्या आज अगर डायनासोर होते, तो उनकी अक़्ल इंसानों के बराबर या उन से ज़्यादा होती?
अगर ऐसा होता, तो शायद वो आज की साइंस-फिक्शन फ़िल्मों में दिखने वाले एलियन्स जैसे होते!
या शायद ऐसा नहीं होता. हां, वो आज की गायों, घोड़ों और तोतों जैसे दिखने वाले होते. उनका मुक़ाबला इंसानों से नहीं, दूसरे जानवरों से होता. और फिर जो बच रहते, वो इंसानों के साथ आराम से धरती पर रहते.
पर ये सब तब होता, जब वो एस्टेरॉयड धरती से नहीं टकराई होती. पर ऐसा हुआ और डायनासोर ख़त्म हो गए.