कारगिल हीरो दिगेन्द्र कुमार की कहानी, गोलियां लगने के बाद भी पाक बंकरों पर फेंके थे 18 हथगोले

कारगिल हीरो दिगेन्द्र कुमार की कहानी, गोलियां लगने के बाद भी पाक बंकरों पर फेंके थे 18 हथगोले

कारगिल जंग के हीरो दिगेन्द्र सिंह ने तीन गोलियां लगने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और पाकिस्तानी बंकरों को बुरी तरह से नष्ट कर दिया। 3 जुलाई 1969 को राजस्थान के सीकर जिले में जन्में दिगेंद्र, साल 1985 में राजस्थान राइफल्स 2 में भर्ती हुए थे। भर्ती होने के कुछ सालों बाद कारगिल युद्ध हो गया। ऐसे में इस युद्ध का हिस्सा दिगेन्द्र सिंह भी रहे और इन्होंने कई दुश्मनों को मौत के घाट उतार दिया।


कारगिल युद्ध जीतने के लिए तोलोलिंग पर कब्जा करना सबसे महत्वपूर्ण था। लेकिन इस जगह को पाकिस्तानी सेना ने अपने कब्जे में ले लिया था और कई सारे बंकर यहां बना लिए थे। ऐसे में भारतीय सेना इस जगह पर कब्जा करने की रणनीति तैयार करने में लगी हुई थी।


जनरल मलिक ने सेना की टुकड़ी से तोलोलिंग पहाड़ी को आजाद कराने की योजना पूछी। दिगेन्द्र ने तुरंत जवाब देते हुए कहा कि “मैं दिगेन्द्र कुमार उर्फ़ कोबरा बेस्ट कमांडो ऑफ़ इंडियन आर्मी, 2 राजपूताना रायफल्स का सिपाही हूं। मेरे पास योजना है, जिसके माध्यम से हमारी जीत सुनिश्चित है। इसके बाद भारतीय सेना की टुकड़ी ने बंकरों को नष्ट करने की योजना बनाई।

बंकर पर फेंके हथगोले


दिगेन्द्र ने मोर्चा संभालते हुए एक हथगोला पाकिस्तानी बंकर पर फेंका। जिससे की तेज धमका हुआ और अंदर से “अल्हा हो अकबर, काफिर का हमला।” आवाज सुनाई दी। दुश्मनों को भारत की योजना का पता चल गया था। दुश्मनों ने फायरिंग शुरू कर दी। इस फायरिंग में दिगेन्द्र को कई गोलियां लगी। लेकिन इन्होंने हिम्मत नहीं हारी और बंकरों को नष्ट करने में लगे रहे।


इनके सीने में तीन गोलियां लगी थी। एक पैर बुरी तरह जख्मी हो गया था। इतना ही नहीं एक पैर से जूता गायब था और पैंट खून से सनी हुई थी। दिगेन्द्र की एलएमजी भी हाथ से छूट गई। शरीर में बिलकुल भी जान नहीं बची थी। लेकिन दिगेन्द्र फिर भी अपने लक्ष्य से नहीं भटके। इन्होंने प्राथमिक उपचार कर बहते खून को सबसे पहले रोका। उसके बाद ये हथगोले बंकरों पर फिर से फेंकने लगे।


दिगेन्द्र ने अकेले ही 11 बंकरों में 18 हथगोले फेंके। जिसकी वजह से सारे पाकिस्तानी बंकर नष्ट हो गए। तभी दिगेन्द्र को पाकिस्तानी मेजर अनवर खान दिखे। जिसपर इन्होंने हमला किया और उनको मार भारत को युद्ध जीता दिया। इसके बाद ये घायल हालत में 13 जून 1999 की सुबह चार बजे चोटी पर पहुंचे और वहां तिरंगा गाड़ दिया।


दिगेन्द्र को उनके इस जज्बे के लिए कई सारे अवॉर्ड से नवाजा गया। इन्हें सरकार की ओर से महावीरचक्र दिया गया।

admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *