सिर्फ एक स्टूडेंट के लिए रोज खुलता है यह स्कूल, सरकार हर महीने खर्च करती है इतने रुपए.

सिर्फ एक स्टूडेंट के लिए रोज खुलता है यह स्कूल, सरकार हर महीने खर्च करती है इतने रुपए.

भारत के सरकारी स्कूलों का हाल क्या है यह आप सभी अच्छे से जानते हैं. कभी यहां बच्चों के मुकाबले टीचर्स कम होते हैं, तो कभी टीचर्स अधिक होते हैं लेकिन बच्चे कम हो जाते हैं. इसके अलावा ‘मिड डे मिल’ में होने वाली परेशानियों को लेकर भी कई तरह की ख़बरें आती रहती है. इस बीच बिहार के ‘गया’ से 20 किलोमीटर दूर स्थित एक स्कूल सबके लिए मिसाल बना हुआ है. मनसा बिगहा गांव स्थित इस सरकारी स्कूल में रोजाना सिर्फ एक स्टूडेंट पढ़ने आता है. इस अकेले बच्चे को पढ़ाने डेली दो टीचर्स आते हैं. इसके अलावा स्कूल में एक प्रिंसिपल भी है. वहीं मिड डे मील बनाने के लिए सिर्फ एक वर्कर है. दिलचस्प बात ये है कि इस अकेले बच्चे के लिए भी रोजाना मिड डे मिल तैयार किया जाता है.

एक बच्ची के लिए रोज खुलता है स्कूल


पूरे स्कूल में अकेले पढ़ने आने वाली इस छात्रा का नाम जाह्नवी कुमारी है. वह पहली क्लास में पढ़ती है. जानकारी के अनुसार स्कूल में 9 बच्चों ने एडमिशन लिया था, लेकिन इनमे जाह्नवी ही एक ऐसी छात्रा है जो रोजाना पढ़ने आती है. उसे पढ़ाने के लिए दो टीचर्स भी डेली आते हैं.

बच्ची में है पढ़ने की लगन
जाह्नवी की टीचर प्रियंका कुमारी बताती है कि वे जाह्नवी की पढ़ाई के प्रति लगन को देख प्रभावित हैं. इसलिए वे भी रोजाना पूरी एनर्जी के साथ उसे पढ़ाती हैं. वे कहती हैं – ‘कभी कभी रोजाना सात घंटे क्लासरूम में सिर्फ एक ही स्टूडेंट को पढ़ाना बोरिंग हो जाता है, पर हमें ख़ुशी है कि उसके अंदर पढ़ने लिखने की लगन है.’

इस कारण स्कूल है खाली


मनसा बिगहा गांव में कुल 35 परिवार रहते हैं, लेकिन फिर भी यहां के सरकारी स्कूल में बच्चे नहीं आते. इसकी वजह यह है कि इस गांव के लोग अपने बच्चों को पास के खिजरसराय स्कूल भेजते हैं. स्कूल के प्रिंसिपल सत्येन्द्र प्रकाश (Satyendra Prasad) बताते कि उन लोगों ने गांव वालों से विनती की थी कि वे अपने बच्चों का एडमिशन हमारे स्कूल में कराएं. लेकिन सभी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं. सरकारी स्कूल में दाखिला कराने से कतराते हैं.

59 हजार महिना है खर्च
ख़बरों की माने तो बिहार के इस स्कूल में अकेले बच्चे को पढ़ाने के लिए सरकार हर महीने करीब 59,000 रुपए खर्च करती है. यह स्कूल कई साल पुराना है. इसमें एक ही मंजिल है. चार क्लासरूम बने है. एक टॉयलेट भी है. यदि किसी दिन मिड डे मिल स्कूल में न बने तो भोजन होटल से मंगवाया जाता है. बता दें कि सरकार का नियम भी यही कहता है कि स्कूल में चाहे एक ही छात्र आए लेकिन मिड डे मिल बनना चाहिए.

 

वैसे इस स्कूल के टीचर्स की भी तारीफ़ होनी चाहिए. सिर्फ एक बच्चे को पढ़ाने के लिए भी यह न सिर्फ रोज आते हैं बल्कि पूरी मेहनत और लगन के साथ उसे पढ़ाते हैं. यदि सभी सरकारी स्कूल के टीचरों की सोच ऐसी हो जाए तो लोग अपने बच्चों को मोटी एडमिशन फीस देकर प्राइवेट स्कूल में नहीं डालेंगे. वे सरकारी स्कूलों का रुख करने लगेंगे.

admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *